लसीका
तंत्र (Lymphatic System)
हमारे
शरीर
में
रुधिर
परिसंचरण
तंत्र
के
अतिरिक्त
एक
अन्य
तरल
परिसंचरण
तंत्र
भी
पाया
जाता
है
जिसे
लसीका
परिसंचरण
तंत्र
कहते
हैं
।
लसीका
रुधिर की
तरह
एक
तरल
होता
है
जिसमें
लाल
रुधिराणु
नहीं
पाये
जाते
हैं
।लसीका में
लिंफोसाइट
की
मात्रा
आधिक
होती
है
। जब
रुधिर
केशिकाओं
में
प्रवाहित
होता
है
तो उसका
कुछ
द्रव
विभिन्न
प्रक्रियाओं
के
फलस्वरूप
केशिकाओं
से
बाहर
निकाल
जाता
है
यही
छना
हुआ
द्रव
लसीका (Lymph) कहलाता
है
। इस
लसीका
को
लसीका
केशिकाएँ
एकत्रित
कर
के
लसीका
वाहिनियों
में
मुक्त
करती
हैं
। लसीका
वाहिनियाँ (Lymph vessels) ,शिराओं
की
तरह
की
नलिकाएँ
हैं
। लसीका
वाहिनियाँ ,बाईं -वक्षीय लसीका-वाहिनी (Left thoracic lymph duct ) व दाईं- वक्षीय लसीका वाहिनी (Right thoracic lymph duct) में
खुलती
हैं
। दोनों
लसीका
वाहिनी ,अग्र -महाशिरा ( Supra-vena-cava) में लसीका
को
मुक्त
करती
हैं
इस
प्रकार
रुधिर
से
छना
हुआ
तरल
पुनः
रुधिर
में
वापस
आ जाता
है
।
लसीका
वाहिनियाँ
कहीं
कही
फूल
कर
गांठ
जैसी
रचनाएँ
बनाती
है
उनको "लसीका
गाँठे (Lymph-Nodes)" कहते
हैं।
प्लीहा (Spleen) ,थाइमस
ग्रंथि ,टॉन्सिल्स ,लसीका
अंग
है
।
लसीका
तंत्र
के
कार्य - लसीका
तंत्र ,रुधिर
केशिकाओं
से
छन
के
ऊतकों
में
आए
द्रव
को
रूधिर
में
वापस
भेजता
है
।
लसीका
गांठों
में
लिंफोसाइटस
परिपक्व
होती
हैं
एवं
एंटिबाडीज
का
निर्माण
होता
है
। लसीका
केशिकाएँ
आंत्र
में
वसीय
अम्ल
व ग्लिसराल
का
अवशोषण
करते
हैं
।
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