मानव हृदय पेशी-चालित (Mayo-genic) होता है। हृदय जब एक बार
भ्रूण-काल स स्पंदन करना आरंभ करता है तो
जीवनपर्यंत रुधिर को पंप करता रहता है ।
हृदय –स्पंदन की शुरुआत
दायें अलिंद मे स्थित सायनो-एट्रियल-नोड (SA-Node) से होती है । इसे
पेस-मेकर भी कहा जाता है । यहाँ से स्पंदन बाएँ अलिंद में फिर एट्रिओ –वेंट्रिकुलर नोड (AV-node) तक पहुंचता है। AV नोड से स्पंदन ,बंडल आफ हिस (A V बंडल) व पुरकींजे –सूत्रों
से होता हुआ निलय की दीवारों में फैल जाता है ।
हृदय की पेशियों का सिकुडना
“प्रकुंचन(Systole)” व फैलना “अनुशीथलन(Diastole)” कहलाता है ।
हृदय एक मिनट में 72 बार
स्पंदित होता है ,इसे हृदय स्पंदन की दर कहते है ।
हृदय –चक्र (Cardiac-cycle) – हृदय –चक्र
एक हृदय-स्पंदन में अलिंद व निलय में होने वाले प्रकुंचन व अनुशीथलन के निश्चित
क्रम को दर्शाता है ।
हृदय –चक्र में क्रमबद्ध होने वाली क्रियाओं में सम्मिलित
अनुशीथलन ,अलिंद प्रकुंचन ,निलय प्रकुंचन व निलय
अनुशीथलन है ।
- सम्मिलित अनुशीथलन (Joint Diastole ) –यह हृदय –स्पंदन के आरंभ होने से ठीक पहले की अवस्था है जिसमे अलिंद व निलय अनुशीथलन में होते है । इसमें शिराओं से रुधिर ,अलिंद में आ रहा होता है ।
- अलिंद-प्रकुंचन (Atrial –Systole )- इस प्रक्रिया में SA नोड से स्पंदन आरंभ हो केआर बाएँ अलिंद तक फैल जाता है व शिराओं के कपाट बंद हो जाते है तथा त्रिवलन व द्विवलन कपाट खुल जाते हैं और रुधिर अलिंदों से निलयों में आ जाता है ।
- निलय-प्रकुंचन (Ventricular –Systole)-अलिंद –प्रकुंचन के बाद निलय-प्रकुंचित होता है जिसमें अलिंद-निलय कपाट तो बंद हो जाते है किन्तु निलय में रुधिर –दाब के बढ्ने के कारण अर्ध-चंद्राकार कपाट(Semilunar-valve) खुल जाते हैं और रुधिर दायेँ निलय से पलमोनर-चाप व बाएँ निलय से केरोटिको –सिस्टेमिक चाप में प्रवेश कर जाता है ।
- निलय अनुशीथलन ( Ventricular Diastole) –निलय संकुचन के बाद निलय अनुशीथलन होता है और अर्धचंद्राकार –कपाट बंद हो जाते हैं ।
हृदय –ध्वनियाँ (Heart -Sounds)–
स्टेथोस्कोप से हृदय –स्पंदन के समय हृदय –ध्वनियाँ सुनाई देती हैं । प्रथम ध्वनि
“lub”
होती है जो निलय –प्रकुंचन के समय अलिंद –निलय कपाट बंद होने के कारण उत्पन्न होती
है । जबकि दूसरी ध्वनि “dup” होती है निलय अनुशीथलन के समय अर्धचंद्राकार –वाल्व के
बंद होने के कारण उत्पन्न होती है ।
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