Monday, March 11, 2019

मानव हृदय की संरचना (Structure of human heart )

मानव का हृदय गुलाबी रंग का एवं शंकु के आकार का होता है यह वक्ष गुहा में फेफड़ों के बीच स्थित होता है हृदय का वाह्य  आवरण दो स्तर  का होता है जिसेपेरिकार्डियम (Pericardium) कहा जाताहैं पेरिकार्डियम के भीतर एक गुहा  होती है  जिसे “पेरिकार्डियल गुहा (Pericardial Cavity) कहा जाता हैं और इस गुहा में पेरिकार्डियल  द्रव (Pericardial Fluid) भरा होता है यह ह्रदय को नम बनाए रखता है और हृदय स्पंदन की समय हृदय को घर्षण से भी बचाता है तथा वाह्य आघात  से हृदय की रक्षा करता है।


 मानव हृदय अन्य स्तनधारियों की तरह चार कक्षीय होता है . ऊपर के कक्ष अलिंद (Atrium) कहलाते हैं जबकि नीचे के कक्ष निलय (Ventricle) कहलाते हैं  एवं कोरोनरी-सल्कस (Coronary sulcus) द्वारा अलग रहते हैं।
  अलिंद शरीर के विभिन्न भागों से आए रुधिर को ग्रहण करते हैं जबकि निलय  द्वारा रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में पंप किया जाता है । 
 हृदय की दीवार तीन स्तरों  की बनी होती है जिन्हें क्रमशः एपि-कार्डियम (Epicardium) मायो-कार्डियम (Mayo-cardium) एंडो-कार्डियम (Endo-cardium) कहा जाता है। 
हृदय की आंतरिक संरचना के अनुसार पूर्ण रूप से 4 कक्षों  में विभाजित रहता है अलिंद अंतर- अलिंद- पट ( इंटर- ऑरिकुलर सेप्टम Interauricular Septum) द्वारा दाएं और बाएं अलिंद में बटा होता है इस पट पर एक अंडाकार गर्त  पाई जाती है जिसे फोसा  ओवैलिस (Fosaa-ovalis) कहते हैं

दाएं अलिंद में  अग्र महाशिरा (Superior-venacava) पश्च महाशिरा (Inferior-venacava) व  कोरोनारी साइनस (Coronary sinus) (हृदय की पेशियों से )  द्वारा  रुधिर लाया जाता है  कोरोनारी साइनस के  द्वार पर कोरोनरी कपाट (Coronary valve or thebesius valve) होते है जबकि पश्च महाशिरा के  मुख पर यूस्टेकियन कपाट(Eustechian valve) होते  है  

बाएँ अलिंद में दोनों फेफड़ों से आने वाली  पल्मोनरी शिराएं  एक संयुक्त मुख से खुलती हैं । अग्र -महाशिरा व पल्मोनरी शिराओं के मुख पे कपाट नहीं होते हैं एवं रुधिर के पश्च -प्रवाह रोकने हेतु इनकी स्थिति तिरछी होती है । 
निलय, अंतरा-निलय पट (Inter-ventricular septum) द्वारा दाएं और बाएं निलय में  विभाजित रहता है निलय का पेशी -स्तर अलिंद की अपेक्षा मोटा होता है
अलिंद अपने ओर के निलय में अलिंद-निलय-छिद्रों (Atrio-ventricular-valve)  द्वारा खुलते हैं

  

 दाया अलिंद दाएं निलय में त्रिवलन कपाट (Tricuspid Valve) द्वारा खुलता है जबकि बाया अलिंद बाएं निलय मे  द्विवलन कपाट (मिट्रल वाल्व Bicuspid or mitral valve) द्वारा खुलता है।  यह कपाट रुधिर को अलिंद से निलय  में आने तो देते  है किंतु वापस नहीं जाने देते। ये कपाट हृदसूत्रों (chordae tendinae ) द्वारा निलय की दीवार से जुड़े रहते हैं । 
 दाएं निलय  से पलमोनरी चाप (Pulmonary Arch) निकलता है जो पलमोनरी धमनियों में विभाजित होता है ये धमनियाँ रुधिर को फेफड़ों तक ले जाती हैं
बाएँ निलय से केरोटिको  -सिस्टेमिक -चाप (Carotico-systemic-Arch)निकलता है जो ऑक्सिजन युक्त रुधिर को शरीर के अन्य भागों तक पहुंचाता हैं    इन चापों के मुख पर तीन छोटे छोटे अर्ध-चंद्राकार वाल्व (Semi-lunar-valve) होते हैं जो रुधिर का पश्च -प्रवाह रोकते हैं

हृदय की कार्य-विधि  -हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है । इसका बायाँ भाग फेफड़ों के छोड़कर शरीर के अन्य भागों में रुधिर को पंप करता है । इसे सिस्टेमिक -परिसंचरण (Systemic-circulation) कहते हैं । जबकि दायाँ भाग फेफड़ों को रुधिर पंप करता हैं । इसे पल्मोनरी -परिसंचरण (Pulmonary-circulation) कहते हैं । सर्वप्रथम अग्र व पश्च -महाशिराओं से रुधिर को दाहिने अलिंद में लाया जाता है ,यहाँ से रुधिर दाहिने निलय में प्रवेश करता है । दाहिने निलय से रुधिर ,पलमोनरी चाप से होते हुये फेफड़ों में जाता है।
दोहरा परिसंचरण

 फेफड़ों से ऑक्सिजन -युक्त रुधिर ,पल्मोनरी शिराओं द्वारा बाएँ अलिंद में लाया जाता है ,बाएँ अलिंद से रुधिर बाएँ निलय में प्रवेश करता है जहाँ से रुधिर केरोटिक-चाप से होता हुआ शरीर के अन्य भागों को पम्प किया जाता है। यह पूरी क्रिया एक हृदय -स्पंदन (Heart-beat) के समय पूरी होती है। 
इस एक चक्र में रुधिर दो बार हृदय से होकर गुजरता है इसलिए इस प्रकार के  परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं । 



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