Wednesday, September 13, 2023

मानव मस्तिष्क (HUMAN BRAIN )

 

मस्तिष्क तंत्रिका तंत्र का सबसे विकसित अंग है।

 मानव मस्तिष्क कपाल गुहा में घिरा होता है और मेनिन्जेस से ढका होता है।

 मानव मस्तिष्क के तीन भाग होते हैं- अग्र-मस्तिष्क, मध्य-मस्तिष्क और पश्च-मस्तिष्क।


अग्रमस्तिष्क ( FORE-BRAIN)- ​​इसे प्रोसेंसेफेलॉन भी कहा जाता है जो प्रमस्तिष्क घ्राण लोब और डाइएन्सेफेलॉन में विभाजित होता है। सेरेब्रम मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। इसमें दो गोलार्ध हैं जो कॉर्पस कैलोसम के माध्यम से जुड़े हुए हैं।

अग्र  मस्तिष्क के कार्य  (FUNCTIONS OF FORE-BRAIN)-

  1. सेरेब्रम (CEREBRUM) बुद्धि का केन्द्र है। यह व्यक्तियों की भावनाओं और भाषा को नियंत्रित करता है। यह ज्ञान का केंद्र है. यह हंसने और रोने की क्रिया को नियंत्रित करता है। यह बाहरी उत्तेजना के विरुद्ध प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार है।
  2. घ्राण लोब (OLFACTORY LOBE)गंध की भावना से संबंधित हैं।
  3. डाइएन्सेफेलॉन DIENCEPHALON) अग्रमस्तिष्क का पिछला भाग है और सेरेब्रम और मध्य मस्तिष्क के बीच स्थित होता है। इसके तीन भाग होते हैं एपिथेलमस, थैलेमस और हाइपोथैलेमस।
  4.  हाइपोथैलेमस (HYPOTHALAMUS)बहुत महत्वपूर्ण भाग है क्योंकि इसका स्राव पिट्यूटरी ग्रंथि से स्राव को नियंत्रित करता है। हाइपोथैलेमस विभिन्न भावनाओं जैसे प्यास, भूख आदि को नियंत्रित करता है। 



मध्य मस्तिष्क (MID-BRAIN) -को मेसेन्सेफेलॉन के नाम से भी जाना जाता है। यह सेरेब्रम और पश्च -मस्तिष्क के नीचे स्थित होता है, इसकी गुहा को सेरेब्रल एक्वाडक्ट या सिल्वियस का एक्वाडक्ट कहा जाता है। यह भाग आंखों से संबंधित मांसपेशियों की गतिविधि को नियंत्रित करता है।


पश्च-मस्तिष्क(HIND-BRAIN) ​​मस्तिष्क के इस भाग को "रोम्बेनोसेफेलॉन" के नाम से भी जाना जाता है। इसके तीन भाग हैं  अनुमस्तिष्क (CEREBELLUM) , पोंस (PONS) और मेडुला ऑबोंगटा (MEDULLA OBLONGATA)।

अनुमस्तिष्क (CEREBELLUM) हमारे मस्तिष्क का दूसरा सबसे बड़ा भाग है। सेरिबैलम कंकाल की मांसपेशियों के संकुचन और समन्वय को नियंत्रित करता है। यह हमारे शरीर के संतुलन और सन्तुलन की स्थिति के लिए भी जिम्मेदार है।

 पोन्स सेरिबैलम के लोबों से जुड़ते हैं और यह हमारे शरीर के पार्श्व भाग की मांसपेशियों का समन्वय बनाते हैं।

मेडुला ऑबोंगटा (MEDULLA OBLONGATA) मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। यह शंक्वाकार आकार की तरह है, यह सभी अनैच्छिक क्रियाओं जैसे दिल की धड़कन, श्वसन दर, पाचन मांसपेशियों का संकुचन आदि को नियंत्रित करता है। यह उल्टी, खांसी, छींक, निगलने जैसी क्रियाओं को भी नियंत्रित करता है।

 मेडुला ऑब्लांगेटा का धागे जैसा हिस्सा रीढ़ की हड्डी में रीढ़ की हड्डी के रूप में स्थित होता है और प्रतिवर्ती क्रिया में भाग लेता है।

Tuesday, January 25, 2022

श्वासोच्छ्वास (Breathing)

श्वासोच्छ्वास (Breathing)  - मानव में सांस लेने की प्रक्रिया को  श्वासोच्छ्वास कहते हैं। 

  इसमें दो चरण होते हैं - अन्तः -श्वसन ( Inspiration)   व निः श्वसन (Expiration)   

अन्तः -श्वसन ( Inspiration)वह प्रक्रिया जिसमें मानव द्वारा वायु को  फेफड़ों में भरा जाता है ,अन्तः श्वसन कहलाती है।   

निः श्वसन (Expiration)    -  वह प्रक्रिया जिसमें मानव द्वारा वायु को  फेफड़ों  से बाहर निकाला जाता  है ,    निः श्वसन कहलाती है।  

श्वासोच्छ्वास की क्रिया कैसे  होती है ?

श्वासोच्छ्वास की क्रिया  डायफ्राम (Diaphragm) ,पसलियों (Ribs) ,स्टर्नम (Sternum) तथा एक्सटर्नल -इंटरकॉस्टल पेशियाँ (External -intercoastal muscles)व इंटरनल -इंटरकॉस्टल  पेशियों (Internal -intercoastal muscles) की गतियों के कारण होती हैं।


अन्तः -श्वसन ( Inspiration)- 
श्वसन के समय एक्सटर्नल -इंटरकॉस्टल पेशियाँ (External -intercostal muscles) सकुडती हैं और  पसलियां  (Ribs) और स्टर्नम (Sternum)  बाहर की ओर खिसकती हैं  तथा डायफ्राम चपटा हो जा ता है।  इसके कारण वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है और हमारे फेफड़े भी फैलते हैं जिससे उनके भीतर वायु -दाब काम हो जाता है और की वायु बाहर से अपने आप  फेफड़ों   भर जाती है।  इस प्रकार अन्तः श्वसन की प्रक्रिया होती है।  

निः श्वसन (Expiration) - नि :श्वसन के समय इंटरनल  -इंटरकॉस्टल पेशियाँ (Internal -intercoastal muscles)  सकुडती हैं और डायफ्राम ,पसलियों ,स्टर्नम  तथा एक्सटर्नल -इंटरकॉस्टल पेशियाँ  अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते हैं। इस समय डायफ्राम गुम्बद के आकर जैसा हो जाता है जिससे वक्ष -गुहा का आयतन कम हो जाता है और फेफड़ों पर दबाब पड़ता है और वो पिचकते है जिसके कारण वायु बाहर निकल जाती है।  

  इस प्रकार मानव में श्वासोच्छ्वास की प्रक्रिया होती है।  

 


  

Monday, January 24, 2022

मानव श्वसन तंत्र Human Respiratory System

 मानव  श्वसन तंत्र में निम्नलिखित अंग  पाए जाते।  हैं।  

 नासिका व  नासा-द्वार (Nose & Nostrils )  - मानव के चेहरे  पर  एक नासिका पायी   जाती  हैं और इसमें   जोड़ी नासा छिद्र  पाए जाते। हैं।  नासा-द्वार अपनी अपनी ओर के नासा-मार्ग में खुलते हैं।  

 नासा मार्ग की तन्त्रिका संवेदी (neuro-sensory) उपकला को श्नीडेरियन कला (Schneiderian membrane) कहते हैं। यह गन्ध का ज्ञान कराती है। 

इसमें श्लेष्म स्नावित करने वाली कोशिकाएँ तथा रोमाभियुक्त कोशिकाएँ भी होती हैं। 

 नासा मार्ग आन्तरिक नासाद्वार (internal nares) द्वारा ग्रसनी के नासा ग्रसनी (Naso-Pharynx) भाग में खुलता है।  


ग्रसनी (Pharynx) - इस भाग में नासा मार्ग तथा मुख गुहिका दोनों खुलते हैं। नासाग्रसनी (nasopharynx) कण्ठद्वार (glottis) द्वारा वायु नाल में खुलता है।


स्वर यन्त्र (Larynx) - यह श्वास नाल का सबसे ऊपरी भाग है। स्वर यन्त्र में वाक् रज्जु (vocal chords) होते हैं। वाक् रज्जुओं में कम्पन होने से ध्वनि उत्पन्न होती है। स्वर यन्त्र उपास्थियों से बना होता है।  

वायुनाल या ट्रैकिया (Wind-Pipe or Trachea) – वायुनाल ग्रीवा से होकर वक्ष गुहा में प्रवेश करती है। वायुनाल की भित्ति में भी उपास्थि के बने 'C' के आकार के छल्ले होते हैं, जो इसकी भित्ति को पिचकने से रोकते हैं।


श्वसनी (Bronchus)-वक्षगुहा में प्रवेश करने के पश्चात् वायुनाल दो श्वसनियों (bronchi) में विभाजित हो जाती है। श्वसनी की भित्ति में भी उपास्थीय छल्ले पाए जाते हैं। दोनों श्वसनियाँ अपनी-अपनी ओर के फेफड़े में प्रवेश करके अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में विभाजित हो जाती हैं।




फेफड़े (फुफ्फुस) (Lungs)   -   फेफड़े मानव का मुख्य  श्वसनांग है। मानव के शरीर में एक जोड़ा फेफड़े होते हैं।  ये वक्ष -गुहा में स्थित दोहरी झिल्ली से  घिरे होते हैं। जिनको प्लुरल झिल्ली (Pleural membrane ) कहते।  हैं।  इनसे प्लुरल गुहा (Pleural cavity )बनती है जिसमें फेफड़े  होते हैं। इसमें प्लुरल द्रव्य (Pleural fluid)  पाया जाता है।

मनुष्य के फेफड़े गुलाबी रंग के कोमल, स्पंजी और लोचदार अंग होते हैं।  प्रत्येक फेफड़ा बाहरी रूप से पालियों (लोब lobes) में विभाजित होता है। बायाँ फेफड़ा दो पालियों में विभाजित होता है जबकि दायां फेफड़ा तीन पालियों में विभाजित होता है।  



प्रत्येक प्राथमिक ब्रोन्कस अपने संबंधित फेफड़े में प्रवेश करने के बाद द्वितीयक ब्रांकाई में विभाजित हो जाता है। द्वितीयक ब्रांकाई  आगे छोटी तृतीयक ब्रांकाई में विभाजित होती है जो अभी भी छोटे ब्रोन्किओल्स में विभाजित होती है। ब्रोन्किओल्स वायुकोशीय नलिकाओं में  विभाजित रहती हैं।  वायुकोशकीय नालिकाओं के सिरे वायु-कोषों (Alveoli) में खुलते हैं । वायुकोष (एल्वियोली )अंगूर के गुच्छों की तरह दिखाई देती है। एल्वियोली की दीवारें बेहद पतली होती हैं और रक्त केशिकाओं से ढकी होती हैं।  एल्वियोली में रक्त और वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है।