पुष्पी पादपों की आकारिकी (MORPHOLOGY OF FLOWERING PLANTS)
आकारिकी
(Morphology) -किसी जीव की
बाहरी संरचना के
अध्ययन को आकारिकी
(Morphology) कहते हैं।
एक पौधे के निम्नलिखित भाग होते
हैं:
जड़ (Root), तना (Stem), पत्ती (Leaf), फूल
(Flower), फल (Fruit) और बीज
(Seed)।
जड़ (The Root)
जड़
(root) एक पुष्पीय पौधे का भूमिगत भाग है जो
आमतौर पर भ्रूण के मूलांकुर (radicle of the embryo) से विकसित होता है। यह पौधे को
मिट्टी में स्थिर रखता है, पानी और खनिजों को अवशोषित करता है, और भोजन का भंडारण या
विशेष कार्य भी कर सकता है।
संरचना (Structure)
जड़ का
अग्र -भाग मूल-गोप से ढका होता है।
कार्यों के आधार पर जड़ को तीन अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता
है।
a)
विभज्योतक-
क्षेत्र (Region of Meristematic Activity) -यह क्षेत्र मूल टोपी के ठीक ऊपर स्थित होता है। इसमें घने कोशिका
द्रव्य (dense cytoplasm) वाले छोटे, पतली भित्ति वाले कोशिकाएं (thin-walled
cells) होती हैं। ये कोशिकाएँ सक्रिय रूप से विभाजित होती हैं और जड़ में नई कोशिकाएँ
जोड़ती हैं। उनके निरंतर विभाजन के कारण, यह क्षेत्र जड़ में वृद्धि की शुरुआत के लिए
जिम्मेदार है।
b)
दीर्घीकरण
-क्षेत्र (Region of Elongation)
-यह क्षेत्र विभज्योतक क्षेत्र (meristematic zone) के ठीक ऊपर स्थित होता है। इस भाग
में कोशिकाएँ तेजी से बड़ी होती हैं और लंबी होती हैं (enlargement and
elongation)। जड़ की लंबाई में वृद्धि मुख्य रूप से इस विस्तारण क्षेत्र की गतिविधि
के कारण होती है।
c)
परिपक्वता
का क्षेत्र (Region of Maturation) -यह
विस्तारण क्षेत्र (elongation zone) के ठीक ऊपर का क्षेत्र है। इस भाग में, कोशिकाएँ
लंबी होना बंद कर देती हैं और धीरे-धीरे स्थायी ऊतकों (permanent tissues) जैसे एपिडर्मिस
(epidermis), कॉर्टेक्स (cortex) और संवहनी ऊतकों (vascular tissues) में भिन्न हो
जाती हैं
मूल रोम
(Root-hairs)- इस क्षेत्र में कुछ एपिडर्मल कोशिकाएँ बहुत महीन और नाजुक मूल रोम
(delicate root hairs) में विकसित होती हैं। ये मूल रोम मुख्य रूप से मिट्टी से पानी
और खनिजों के अवशोषण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
जड़ -प्रकार और उदाहरण
(Types and Examples)
1. मूसला जड़ प्रणाली (Tap root system):
यह द्विबीजपत्री (dicots) में मूलांकुर (radicle) से विकसित होती है, जिसमें पार्श्व
शाखाओं (lateral branches) के साथ एक प्राथमिक जड़ (primary root) होती है (जैसे, सरसों,
मटर)।
2. रेशेदार जड़ प्रणाली (Fibrous root
system): यह एकबीजपत्री (monocots) में पाई जाती है; प्राथमिक जड़ अल्पकालिक होती
है और तने के आधार से निकलने वाली कई जड़ों से बदल जाती है (जैसे, गेहूँ, घास)।
3. अपस्थानिक जड़ें (Adventitious roots):
ये मूलांकुर (radicle) के अलावा अन्य भागों से उत्पन्न होती हैं (जैसे, बरगद, मॉन्स्टेरा,
मक्का)।
जड़ों
का रूपांतरण (Modification of roots)
जड़ों
को भोजन के भंडारण (जैसे, गाजर, मूली, शकरकंद), यांत्रिक सहायता (जैसे, बरगद की प्रॉप
जड़ें, मक्का की स्टिल्ट जड़ें) और श्वसन (जैसे, मैंग्रोव में न्यूमेटोफोर) जैसे कार्यों
के लिए रूपांतरित किया जाता है। जड़ें पौधे के विकास नियामकों (plant growth
regulators) का भी संश्लेषण करती हैं।
तना (The Stem)
तना (stem) पौधे के अक्ष का
हवाई भाग (aerial part) है
जो भ्रूण के
प्रांकुर (plumule of the
embryo) से विकसित होता
है। इसमें शाखाएँ
(branches), पत्तियाँ (leaves), फूल (flowers) और फल
(fruits) लगते हैं।
संरचना (Structure) -तने में
पर्व-संधियाँ (nodes) होती
हैं (जहाँ से पत्तियाँ निकलती हैं)
और पर्व-संधियों
के बीच के क्षेत्र को पर्व-संधियाँ (internodes) कहते हैं।
इसमें कलियाँ (buds) होती
हैं, जो शीर्षस्थ
(terminal) या कक्षस्थ (axillary) हो सकती
हैं। युवा अवस्था
में तने हरे होते हैं
लेकिन अक्सर उम्र
के साथ लकड़ी
वाले और भूरे हो जाते
हैं।
प्रकार और उदाहरण
(Types and Examples)-तने विशेष कार्यों
के लिए रूपांतरित
(modified) हो सकते हैं:
- भंडारण
(Storage): आलू, अदरक, हल्दी।
- सहारा
(Support): ककड़ी और कद्दू में
प्रतान (tendrils)।
- सुरक्षा
(Protection): नींबू और बोगनविलिया में
काँटे (thorns)।
- कायिक
प्रवर्धन (Vegetative
propagation): गन्ना,
पुदीना।
कार्य-(Function)-तने के
मुख्य कार्य पानी,
खनिजों और भोजन का संवहन
(conduction), पत्तियों और फूलों
को सहारा देना,
और कभी-कभी युवा हरे
तनों में प्रकाश
संश्लेषण (photosynthesis) करना है।
पत्ती (The
Leaf)
परिभाषा (Definition) - पत्ती (leaf) तने पर एक पर्व-संधि (node) पर लगी हुई एक
पार्श्व, चपटा, हरा
अंग (lateral, flattened, green
organ) है। यह प्ररोह
शीर्षस्थ विभज्योतक (shoot apical meristem) से उत्पन्न
होती है, इसकी
कक्षा (axil) में एक
कली (bud) होती है,
और यह प्रकाश
संश्लेषण (photosynthesis) का प्राथमिक
स्थल (primary site) है।
संरचना (Structure) -एक विशिष्ट
पत्ती में तीन भाग होते
हैं:
a)
पर्णाधार
(Leaf base): पत्ती को तने
से जोड़ता है;
एकबीजपत्री (monocots) में यह
एक आवरण (sheath) बना
सकता है, फलीदार
पौधों (legumes) में यह
एक पर्णवृंत (pulvinus) में
सूज सकता है,
और कभी-कभी अनुपर्ण (stipules) मौजूद होते
हैं।
b)
पर्णवृंत
(Petiole): वह डंठल जो
लैमिना (lamina) को तने
से पकड़े रहता
है, जिससे पत्ती
के फलक (leaf blade) को
अधिकतम प्रकाश और
हवा मिल पाती
है।
c)
पर्णफलक
(Lamina - leaf blade): मध्यशिरा
(midrib), शिराओं (veins) और शिराओं
की उप-शाखाओं
(veinlets) के साथ हरा,
फैला हुआ भाग।
शिराएँ सहारा देती
हैं और परिवहन
करती हैं।
प्रकार और
उदाहरण (Types and Examples)
पर्णफलक के आधार पर
(Based on Lamina):
a)
सरल
पत्ती (Simple leaf): जब पत्ती
में पर्णफलक
बिना कटा हुआ या कटाव
जो मध्यशिरा (midrib) को
नहीं छूता (जैसे,
आम) तो उसे सरल पत्ती
कहते हैं।
b)
संयुक्त
पत्ती (Compound leaf): इसमें पर्णफलक
गहरे रूप से पर्णकों (leaflets) में कटा
हुआ होता है
(जैसे, नीम - पिच्छाकार;
सेमल - हस्ताकार)।
शिराविन्यास के आधार पर
(Based on Venation):
a)
जालीदार
शिराविन्यास (Reticulate
venation): इनमें शिराओं का
जाल पाया जाता है (जैसे, पीपल,
द्विबीजपत्री)।
b)
समानांतर
शिराविन्यास (Parallel
venation): इनमें शिराएँ
समानांतर चलती हैं
(जैसे, गेहूँ, एकबीजपत्री)।
पर्णविन्यास (Phyllotaxy) -तने या
शाखा पर पत्तियों
के लगने की व्यवस्था को पर्णविन्यास
(phyllotaxy) कहते हैं। यह
तीन प्रकार का
होता है:
a)
एकान्तर
(Alternate): प्रत्येक पर्व-संधि
पर एक-एक पत्ती एकान्तर
क्रम में निकलती
है (जैसे, सरसों,
सूरजमुखी, गुड़हल)।
b)
सम्मुख
(Opposite): एक पर्व-संधि
पर पत्तियों का
एक जोड़ा एक-दूसरे के
विपरीत निकलता है
(जैसे, अमरूद, कैलोट्रोपिस)।
c)
चक्राकार
(Whorled): एक पर्व-संधि
पर एक चक्र
(whorl) में दो से
अधिक पत्तियाँ निकलती
हैं (जैसे, एल्स्टोनिया)।
कार्य और रूपांतरण
(Function and Modification) -प्रकाश संश्लेषण
(photosynthesis) की प्रक्रिया पत्ती में
होती है।
पत्तियाँ काँटों (spines) (नागफनी),
प्रतान (tendrils) (मटर), भंडारण
पत्तियों (storage leaves) (प्याज, रसीले
पौधे) और कीट-पकड़ने वाले
अंगों (insect-trapping organs)
(घटपर्णी, वीनस फ्लाईट्रैप)
में रूपांतरित हो
सकती हैं। पत्तियाँ
वाष्पोत्सर्जन (transpiration), गैस विनिमय
(gas exchange) और भोजन के
भंडारण में भी भूमिका निभाती
हैं।
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