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Showing posts from March, 2019

लसीका तंत्र (Lymphatic System)

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लसीका तंत्र (Lymphatic System) हमारे शरीर में रुधिर परिसंचरण तंत्र के अतिरिक्त एक अन्य तरल परिसंचरण तंत्र भी पाया जाता है जिसे लसीका परिसंचरण तंत्र कहते हैं । लसीका रुधिर   की तरह एक तरल होता है जिसमें लाल रुधिराणु नहीं पाये जाते हैं ।लसीका    में लिंफोसाइट की मात्रा आधिक होती है । जब रुधिर केशिकाओं में प्रवाहित होता है तो   उसका कुछ द्रव विभिन्न प्रक्रियाओं के फलस्वरूप केशिकाओं से बाहर निकाल जाता है यही छना हुआ द्रव लसीका (Lymph) कहलाता है ।  इस लसीका को लसीका केशिकाएँ एकत्रित कर के लसीका वाहिनियों में मुक्त करती हैं । लसीका वाहिनियाँ (Lymph vessels) , शिराओं की तरह की नलिकाएँ हैं । लसीका वाहिनियाँ , बाईं - वक्षीय लसीका - वाहिनी (Left thoracic lymph duct ) व दाईं - वक्षीय लसीका वाहिनी (Right thoracic lymph duct)  में खुलती हैं । दोनों लसीका वाहिनी , अग्र - महाशिरा ( Supra-vena-cava) में   लसीका को मुक्त करती हैं इस प्रकार ...

ह्रदय स्पंदन और हृदय -चक्र (Heart-beat and Cardiac-cycle)

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मानव हृदय पेशी-चालित ( Mayo-genic) होता है। हृदय जब एक बार भ्रूण-काल स स्पंदन करना आरंभ करता  है तो जीवनपर्यंत रुधिर को पंप करता रहता है । हृदय –स्पंदन की शुरुआत दायें अलिंद मे स्थित सायनो-एट्रियल-नोड ( SA-Node) से होती है । इसे पेस-मेकर भी कहा जाता है । यहाँ से स्पंदन बाएँ अलिंद में फिर  एट्रिओ –वेंट्रिकुलर नोड ( AV-node) तक पहुंचता है। AV नोड से स्पंदन , बंडल आफ हिस ( A V बंडल) व पुरकींजे –सूत्रों से होता हुआ निलय की दीवारों में फैल जाता है । हृदय की पेशियों का सिकुडना “प्रकुंचन( Systole)” व फैलना “अनुशीथलन( Diastole)” कहलाता है ।   हृदय एक मिनट में 72 बार स्पंदित होता है , इसे हृदय स्पंदन की दर कहते है । हृदय –चक्र (Cardiac-cycle)  – हृदय –चक्र एक हृदय-स्पंदन में अलिंद व निलय में होने वाले प्रकुंचन व अनुशीथलन के निश्चित क्रम को दर्शाता है ।  हृदय –चक्र में क्रमबद्ध होने वाली क्रियाओं में सम्मिलित अनुशीथलन , अलिंद प्रकुंचन , निलय प्रकुंचन व निलय अनुशीथलन है । सम्मिलित अनुशीथलन ( Joint Diastole ) –यह हृदय –स्पंदन के आरंभ होने से ठीक पहल...

मानव हृदय की संरचना (Structure of human heart )

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मानव का हृदय गुलाबी रंग का एवं शंकु के आकार का होता है । यह वक्ष गुहा में फेफड़ों के बीच स्थित होता है । हृदय का वाह्य   आवरण दो स्तर   का होता है जिसे “ पेरिकार्डियम (Pericardium) ” कहा जाताहैं । पेरिकार्डियम के भीतर एक गुहा   होती है  जिसे “पेरिकार्डियल गुहा (Pericardial Cavity) ” कहा जाता हैं और इस गुहा में “ पेरिकार्डियल   द्रव (Pericardial Fluid) ” भरा होता है यह ह्रदय को नम बनाए रखता है और हृदय स्पंदन की समय हृदय को घर्षण से भी बचाता है तथा वाह्य आघात   से हृदय की रक्षा करता है।   मानव हृदय अन्य स्तनधारियों की तरह चार कक्षीय होता है . ऊपर के कक्ष अलिंद (Atrium) कहलाते हैं जबकि नीचे के कक्ष निलय (Ventricle) कहलाते हैं   एवं कोरोनरी - सल्कस (Coronary sulcus) द्वारा अलग रहते हैं।    अलिंद शरीर के विभिन्न भागों से आए रुधिर को ग्रहण करते हैं जबकि निलय   द्वारा रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ...