मानव पाचन तंत्र एक आहार नाल और कुछ सहायक ग्रंथियों से बना होता है।
आहार नाल - मानव की आहार नाल मुख से गुदा तक विस्तृत रहती है।
इसके प्रमुख भाग हैं - मुख ,ग्रसनी ,ग्रास नली , आमाशय , क्षुद्रांत्र ,वृदांत्र।
मानव पाचन तंत्र |
1-मुंख व मुखगुहा (Mouth and Buccal Cavity ) : मुख द्वार से भोजन को ग्रहण किया जाता है। मुख-द्वार होंठो से बंद होते हैं। हमारे गालो के भीतर का खाली स्थान मुखगुहा कहा जाता है।
मुंख गुहा में दांत , जीभ या जिह्वा व लार ग्रंथिया होती है।
जिह्वा (जीभ) (Tongue) - जिह्वा (जीभ) में स्वाद रिसेप्टर्स होते हैं जो भोजन के स्वाद की पहचानने का कार्य करते हैं। ये भोजन में लार को मिलाने का कार्य करती है।
दांत (Teeth)-दांत भोजन को छोटे-छोटे कणों में तोड़ने में मदद करते हैं जिससे भोजन को निगलना आसान हो जाता है। मनुष्य में चार प्रकार के दांत होते हैं।
कृन्तक (Incisior) , कैनाइन (Canine) , प्रीमोलर्स (Premolars) व मोलर्स (Molars)
कृन्तक दाँतों का उपयोग भोजन को काटने के लिए किया जाता है।
कैनाइन दांतों का उपयोग भोजन को फाड़ने और कठोर पदार्थों को फोड़ने के लिए किया जाता है।
प्रीमोलर्स व मोलर्स का उपयोग भोजन पीसने के लिए किया जाता है।
लार ग्रंथियां (Salivary Glands) - लार ग्रंथियां लार का स्राव करती हैं। लार भोजन को चिकना बना देती है जिससे भोजन को निगलना आसान हो जाता है।
लार में एंजाइम लार एमाइलेज (Salivary amylase) या टायलिन (Ptyalin) भी होता है। लार एमाइलेज भोजन के स्टार्च को पचाता है और इसे माल्टोज में परिवर्तित करता है।
मुखगुहा से कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च ) का पाचन आरम्भ होता है।
2-ग्रसनी व ग्रासनली (Pharynx and Oesophagus)- मुखगुहा पीछे की ओर ग्रसनी में खुलती है। जबकि ग्रसनी ,ग्रास नाली में खुलती है। आहार नाल में मांसपेशियों के पेरिस्टलेटिक गति द्वारा भोजन आगे की ओर खिसकता रहता है। भोजन ग्रसनी व ग्रासनली से होता हुआ आमाशय में पहुँचता है।
3-आमाशय (Stomach)- आमाशय एक थैले जैसा अंग है। पेट की अत्यधिक पेशीय दीवारें भोजन को मथने में मदद करती हैं। इसके तीन भाग होते हैं फंडस , कार्डियक व पाइलोरिक
आमाशय की दीवारों पर उपस्थित गैस्ट्रिक ग्रंथियां निम्नलिखित पदार्थों को स्रावित करती हैं।
(a) हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCl) - हाइड्रोक्लोरिक एसिड उन कीटाणुओं को मारता है जो भोजन में मौजूद हो सकते हैं। इसके अलावा, यह आमाशय के अंदर के माध्यम को अम्लीय बनाता है। गैस्ट्रिक एंजाइम के काम करने के लिए अम्लीय माध्यम आवश्यक है।
(b) म्यूकस (Mucus) - आमाशय की दीवारों द्वारा स्रावित म्यूकस हाइड्रोक्लोरिक एसिड से आमाशय की अंदरूनी परत को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है।
(c) पेप्सिन (Pepsin) - आमाशय में स्रावित एंजाइम पेप्सिन एक प्रोटीन -पाचक एंजाइम है जो प्रोटीन का आंशिक पाचन करता है।
आमाशय से प्रोटीन का पाचन आरम्भ होता है।
4-क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) ( Small Intestine): यह एक अत्यधिक कुंडलित नली जैसी संरचना होती है।
क्षुद्रांत्र को तीन भागों में बांटा गया है, जैसे ग्रहणी (Duodenum), जेजुनम (Jejunum) और इलियम (Ileum)।
क्षुद्रांत्र में भोजन का पाचन पित्त रस (Bile) ,अग्नाशयी रस (Pancreatic juice) व आंत्रीय रस (Intestinal Juice) की सहायता से होता है। पित्त रस , यकृत (Liver) से निकलता है जबकि अग्नाशयी रस अग्नाशय (pancreas) से स्रावित होता है। आंत्रीय रस क्षुद्रांत्र की दीवारों से स्रावित होता है।
पित्त और अग्नाशयी रस एक हेपेटोपेंक्रिएटिक नलिका के माध्यम से ग्रहणी में जाते हैं।
पित्त वसा को छोटे-छोटे कणों में तोड़ देता है। इस प्रक्रिया को वसा का इमल्सीकरण कहते हैं।
अग्नाशयी रस में उपस्थित वसा पाचक एंजाइम लाइपेज वसा को फैटी एसिड और ग्लिसरॉल में पचाता है।
अग्नाशयी रस में उपस्थित प्रोटीन पाचक एंजाइम ट्रिप्सिन व काइमोट्रिप्सिन प्रोटीन को पेप्टोंस जैसे छोटे टुकड़ों में पचाते हैं।
आंत्रीय रस में उपस्थित एन्जाइम्स (लाइपेस, न्यूक्लीज, सुक्रेज, माल्टेज, डाइपेप्टिडेज, इनवर्टेज, लैक्टेज, न्यूक्लियोसिडेज) भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट वसा व प्रोटीन्स का पूर्णतः पाचन कर देते हैं।
पाचन का प्रमुख भाग ग्रहणी में होता है। जेजुनम में कोई पाचन नहीं होता है:
भोजन में उपस्थित पोषक पदार्थों का सरल व घुलनशील सूक्ष्म भागों में टूट जाना पाचन (Digestion) कहलाता है।
रसांकुर - इलियम में आंतरिक दीवार कई उंगली जैसी संरचनाओं में रूपांतरित होती है, जिसे रसांकुर कहा जाता है। ये इलियम के अंदर सतह क्षेत्र को बढ़ाते है ताकि अधिकतम अवशोषण हो सके। इसके अतिरिक्त रसांकुर पचे भोजन अधिकतम अवशोषण के लिए इलियम में रोकने में भी सहायता करते हैं । रसांकुरों में रुधिर व लिम्फ नलिकाएं होती हैं जिनमें पचा हुआ भोजन प्रवेश करता है।
यह प्रक्रिया अवशोषण (Absorption) कहलाती है।
वृहदांत्र (बड़ी आंत्र ) (Large Intestine) : यह क्षुद्रांत्र से छोटी होती है। इसके तीन भाग सीकम ,कोलन व मलाशय (Caecum ,Colon and Rectum) होते हैं। अपचित भोजन बड़ी आंत में चला जाता है। कुछ पानी और नमक बड़ी आंत की दीवारों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।
उसके बाद, अपचित भोजन मलाशय (Rectum) में चला जाता है, जहां से इसे गुदा (Anus) से बाहर निकाल दिया जाता है।
भोजन के अपचे भाग को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया बहिःक्षेपण (Egestion) कहलाती है।
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